Monday, October 20, 2014

तुम आए हो न शब-ए-इंतज़ार गुज़री है

तुम आए हो न शब-ए-इंतज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार-बार गुज़री है

(शब-ए-इंतज़ार = इंतज़ार की रात), (सहर = सुबह)

जुनूँ में जितनी भी गुज़री ब-कार गुज़री है
अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है

(ब-कार = काम करते हुए)

हुई है हज़रते-नासेह से गुफ़्तगू जिस शब
वो शब ज़रूर सरे-कू-ए-यार गुज़री है

(हज़रते-नासेह = उपदेशक महोदय), (शब = रात), (सरे-कू-ए-यार = यार की गली में)

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुज़री है

न गुल खिले हैं, न उनसे मिले, न मय पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है

चमन पे ग़ारते-गुलचीं से जाने क्या गुज़री
क़फ़स से आज सबा बेक़रार गुज़री है

(ग़ारते-गुलचीं = फूल चुनने वाले की लाई हुई तबाही), (क़फ़स = पिंजरा), (सबा = बयार, हवा)

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नूरजहाँ/ Noorjahan



अमानत अली/ Amanat Ali



Dr. Radhika Chopda/ डा राधिका चोपड़ा 

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