Friday, October 17, 2014

तेरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी न हुई

तेरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी न हुई
वो ज़िन्दगी तो मुहब्बत की ज़िन्दगी न हुई

कहाँ वह शोख़, मुलाक़ात ख़ुद से भी हुई
बस एक बार हुई, और फिर कभी न हुई

कोई बढ़े न बढ़े हम तो जान देते हैं
फिर ऐसी चश्म-ए-तवज्जो कभी हुई न हुई

सबा यह उन से हमारा पयाम कह देना
गए हो जब से यहाँ सुबह-ओ-शाम ही न हुई

इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
कि हमने आह तो की उनसे आह भी न हुई

ख़याल-ए-यार सलामत तुझे ख़ुदा रखे
तेरे बगैर कभी घर में रोशनी न हुई

गए थे हम भी 'जिगर' जल्वा-गाहे जानाँ में
वो पूछते ही रहे, हमसे बात ही न हुई

-जिगर मुरादाबादी

मेहदी हसन/ Mehdi Hassan 


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