Friday, October 24, 2014

काश ऐसा कोई मंज़र होता

काश ऐसा कोई मंज़र होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता

जमा करता जो मैं आए हुए संग
सर छुपाने के लिये घर होता

(संग = पत्थर)

इस बुलंदी पे बहुत तन्हा हूँ
काश मैं सबके बराबर होता

उस ने उलझा दिया दुनिया में मुझे
वरना इक और क़लंदर होता

(क़लंदर = साधू, त्यागी, मस्त मौला)

-ताहिर फ़राज़

हरिहरन/ Hariharan


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