मेहरबानी को मुहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह ! मुझ से वो तेरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं
(रंजिश-ए-बेजा = अकारण क्रोध, बिना कारण का वैमनस्य)
-फ़िराक़ गोरखपुरी
आह ! मुझ से वो तेरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं
(रंजिश-ए-बेजा = अकारण क्रोध, बिना कारण का वैमनस्य)
-फ़िराक़ गोरखपुरी
No comments:
Post a Comment