Sunday, November 16, 2014

भुला दो रंज की बातों में क्या है

भुला दो रंज की बातों में क्या है
इधर देखो मेरी आँखों में क्या है

(रंज = मनमुटाव, शत्रुता)

बहुत तारीक़ दिन है फिर भी देखो
उजाला चाँदनी रातों में क्या है

(तारीक़ = अँधेरा)

नहीं पाती जिसे बेदार नज़रें
ख़ुदाया ये मेरे ख़्वाबों में क्या है

(बेदार = जागृत)

ये क्या ढूँढे चली जाती है दुनिया
तमाशा सा गली कूचों में क्या है

है वहशत सी ये हर चेहरे पे कैसी
न जाने सहमा सा नज़रों में क्या है

ये इक है ज़ान सा दरिया में क्यों है
ये कुछ सामान सा मौजों में क्या है

हैज़ान = आवेश, तेज़ी, वेग)

ज़रा सा बल है इक ज़ुल्फ़ों का उसकी
वगरना ज़ोर ज़ंजीरों में क्या है

है ख़मयाज़े सुरूर-ए-आरज़ू के
निशात-ओ-ग़म कहो नामों में क्या है

(ख़मयाज़े = बुरे काम के परिणाम), (सुरूर-ए-आरज़ू = इच्छा/ अभिलाषा का नशा), (निशात-ओ-ग़म = सुख और दुःख)

तुम्हारी देर-आमेज़ी भी देखी
तक़ल्लुफ़ लखनऊ वालों में क्या है

(देर-आमेज़ी = विलम्ब से मिलना)

-शान-उल-हक़ हक़्की


                                                                रेशमा/ Reshma 


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