भुला दो रंज की बातों में क्या है
इधर देखो मेरी आँखों में क्या है
(रंज = मनमुटाव, शत्रुता)
बहुत तारीक़ दिन है फिर भी देखो
उजाला चाँदनी रातों में क्या है
(तारीक़ = अँधेरा)
नहीं पाती जिसे बेदार नज़रें
ख़ुदाया ये मेरे ख़्वाबों में क्या है
(बेदार = जागृत)
ये क्या ढूँढे चली जाती है दुनिया
तमाशा सा गली कूचों में क्या है
है वहशत सी ये हर चेहरे पे कैसी
न जाने सहमा सा नज़रों में क्या है
ये इक है ज़ान सा दरिया में क्यों है
ये कुछ सामान सा मौजों में क्या है
हैज़ान = आवेश, तेज़ी, वेग)
ज़रा सा बल है इक ज़ुल्फ़ों का उसकी
वगरना ज़ोर ज़ंजीरों में क्या है
है ख़मयाज़े सुरूर-ए-आरज़ू के
निशात-ओ-ग़म कहो नामों में क्या है
(ख़मयाज़े = बुरे काम के परिणाम), (सुरूर-ए-आरज़ू = इच्छा/ अभिलाषा का नशा), (निशात-ओ-ग़म = सुख और दुःख)
तुम्हारी देर-आमेज़ी भी देखी
तक़ल्लुफ़ लखनऊ वालों में क्या है
(देर-आमेज़ी = विलम्ब से मिलना)
-शान-उल-हक़ हक़्की
रेशमा/ Reshma
इधर देखो मेरी आँखों में क्या है
(रंज = मनमुटाव, शत्रुता)
बहुत तारीक़ दिन है फिर भी देखो
उजाला चाँदनी रातों में क्या है
(तारीक़ = अँधेरा)
नहीं पाती जिसे बेदार नज़रें
ख़ुदाया ये मेरे ख़्वाबों में क्या है
(बेदार = जागृत)
ये क्या ढूँढे चली जाती है दुनिया
तमाशा सा गली कूचों में क्या है
है वहशत सी ये हर चेहरे पे कैसी
न जाने सहमा सा नज़रों में क्या है
ये इक है ज़ान सा दरिया में क्यों है
ये कुछ सामान सा मौजों में क्या है
हैज़ान = आवेश, तेज़ी, वेग)
ज़रा सा बल है इक ज़ुल्फ़ों का उसकी
वगरना ज़ोर ज़ंजीरों में क्या है
है ख़मयाज़े सुरूर-ए-आरज़ू के
निशात-ओ-ग़म कहो नामों में क्या है
(ख़मयाज़े = बुरे काम के परिणाम), (सुरूर-ए-आरज़ू = इच्छा/ अभिलाषा का नशा), (निशात-ओ-ग़म = सुख और दुःख)
तुम्हारी देर-आमेज़ी भी देखी
तक़ल्लुफ़ लखनऊ वालों में क्या है
(देर-आमेज़ी = विलम्ब से मिलना)
-शान-उल-हक़ हक़्की
रेशमा/ Reshma
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