देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ
हम से है तेरा दर्द का नाता, देख हमें मत भूल मियाँ
(दश्त-ए-तलब = इच्छा का जंगल)
अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तेरा उसूल मियाँ
हम क्यों छोड़ें इन गलियों के फेरों का मामूल मियाँ
(अहल-ए-वफ़ा = वफ़ा वाले लोग), (मामूल = रीति, रिवाज, रस्म)
ये तो कहो, कभी इश्क़ किया है, जग में हुए हो रुसवा भी?
इस के सिवा हम कुछ भी न पूछें, बाक़ी बात फ़िज़ूल मियाँ
(रुसवा = बदनाम)
अब तो हमें मंज़ूर है ये भी, शहर से निकलें, रुसवा हों
तुझ को देखा, बातें कर लीं, मेहनत हुई वसूल मियाँ
(रुसवा = बदनाम)
'इंशा' जी क्या उज्र है तुमको, नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो
रूपनगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियाँ
(उज्र = आपत्ति, बहाना), (नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो = दिल और जान रूपी धन भेंट करो), (महसूल = चुंगी पर वसूला जाने वाला टैक्स, मालगुज़ारी)
-इब्ने इंशा
रेशमा/ Reshma
हम से है तेरा दर्द का नाता, देख हमें मत भूल मियाँ
(दश्त-ए-तलब = इच्छा का जंगल)
अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तेरा उसूल मियाँ
हम क्यों छोड़ें इन गलियों के फेरों का मामूल मियाँ
(अहल-ए-वफ़ा = वफ़ा वाले लोग), (मामूल = रीति, रिवाज, रस्म)
ये तो कहो, कभी इश्क़ किया है, जग में हुए हो रुसवा भी?
इस के सिवा हम कुछ भी न पूछें, बाक़ी बात फ़िज़ूल मियाँ
(रुसवा = बदनाम)
अब तो हमें मंज़ूर है ये भी, शहर से निकलें, रुसवा हों
तुझ को देखा, बातें कर लीं, मेहनत हुई वसूल मियाँ
(रुसवा = बदनाम)
'इंशा' जी क्या उज्र है तुमको, नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो
रूपनगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियाँ
(उज्र = आपत्ति, बहाना), (नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो = दिल और जान रूपी धन भेंट करो), (महसूल = चुंगी पर वसूला जाने वाला टैक्स, मालगुज़ारी)
-इब्ने इंशा
रेशमा/ Reshma
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