Sunday, November 16, 2014

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ
हम से है तेरा दर्द का नाता, देख हमें मत भूल मियाँ

(दश्त-ए-तलब =  इच्छा का जंगल)

अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तेरा उसूल मियाँ
हम क्यों छोड़ें इन गलियों के फेरों का मामूल मियाँ

(अहल-ए-वफ़ा = वफ़ा वाले लोग), (मामूल = रीति, रिवाज, रस्म)

ये तो कहो, कभी इश्क़ किया है, जग में हुए हो रुसवा भी?
इस के सिवा हम कुछ भी न पूछें, बाक़ी बात फ़िज़ूल मियाँ

(रुसवा = बदनाम)

अब तो हमें मंज़ूर है ये भी, शहर से निकलें, रुसवा हों
तुझ को देखा, बातें कर लीं, मेहनत हुई वसूल मियाँ

(रुसवा = बदनाम)

'इंशा' जी क्या उज्र है तुमको, नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो
रूपनगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियाँ

(उज्र = आपत्ति, बहाना), (नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो = दिल और जान रूपी धन भेंट करो), (महसूल = चुंगी पर वसूला जाने वाला टैक्स, मालगुज़ारी)

-इब्ने इंशा

                                                                  रेशमा/ Reshma 

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