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Spiritual Science
Saturday, November 1, 2014
अब
याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही
यारों ने इतनी दूर बसा ली हैं बस्तियाँ
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फ़िराक़ गोरखपुरी
याद-ए-रफ़्तगाँ = गुज़री हुई यादें
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