Saturday, November 8, 2014

मस्ती में फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जाना नहीं देखा

मस्ती में फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जाना नहीं देखा
सुनते हैं बहार आई गुलिस्ताँ नहीं देखा

(फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जाना = प्रियतम के चेहरे का प्रकाश/ रौनक/ शोभा)

ज़ाहिद ने मेरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
रुख़ पर तेरी ज़ुल्फ़ों को परीशाँ नहीं देखा

(ज़ाहिद =  संयमी, विरक्त, जप-तप करने वाला), (हासिल-ए-ईमाँ = धर्म/ विश्वास का नतीजा),
(परीशाँ = अस्त-व्यस्त)

आये थे सभी तरह के जलवे मेरे आगे
मैंने मगर ऐ दीदा-ए-हैराँ नहीं देखा

(दीदा-ए-हैराँ = हैरान नज़रें)

इस तरह ज़माना कभी होता न पुर-आशोब
फ़ित्नों ने तेरा गोशा-ए-दामाँ नहीं देखा

(पुर-आशोब = हलचल/ उथल-पुथल/ उपद्रव से भरा हुआ), (फ़ित्नों = उपद्रवों), (गोशा-ए-दामाँ = दामन का कोना)

हर हाल में बस पेश-ए-नज़र है वही सूरत
मैने कभी रू-ए-शब-ए-हिज्राँ नहीं देखा

(रू-ए-शब-ए-हिज्राँ = जुदाई की रात का चेहरा)

कुछ दावा-ए-तमकीं में है माज़ूर भी ज़ाहिद
मस्ती में तुझे चाक-गरीबाँ नहीं देखा

(दावा-ए-तमकीं = आज्ञाकारिता/ Obedience का दावा), (माज़ूर = विवश, लाचार), (चाक-गरीबाँ = फटा हुआ गरिबान/ कंठी)

रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह कफ़स में
जैसे कभी आँखों से गुलिस्ताँ नहीं देखा

(रूदाद-ए-चमन = बग़ीचे का समाचार/ हाल/ वृतांत), (कफ़स = पिंजरा)

मुझ ख़स्ता-ओ-महजूर की आँखें हैं तरसती
कब से तुझे ऐ सर्व-ख़िरामा नहीं देखा

(महजूर = अलग किया हुआ, छोड़ा हुआ, परित्यक्त), (सर्व-ख़िरामा = सर्व की तरह चलने वाला, शान से चलने वाला)

क्या क्या हुआ हंगाम-ए-जूनून ये नहीं मालूम
कुछ होश जो आया तो गरीबाँ नहीं देखा

शाइस्ता-ए-सोहबत कोई उन में नहीं 'असगर'
काफ़िर नहीं देखे कि मुसलमाँ नहीं देखा

(शाइस्ता-ए-सोहबत = सभ्य/ शिष्ट का साथ)

-असग़र गोण्डवी

आबिदा परवीन/ Abida Parveen

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