Tuesday, November 4, 2014

ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा, वो नजात-ए-दिल का आलम

ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा, वो नजात-ए-दिल का आलम
तेरा हुस्न दस्त-ए-ईसा, तेरी याद रू-ए-मरीयम

(जफ़ा-ए-ग़म = दुःख का सितम/ अत्याचार/ अन्याय),
(चारा = उपाय, तरक़ीब),
(नजात-ए-दिल = दिल से छुटकारा),  
(आलम = अवस्था, दशा, हालत), 
(दस्त-ए-ईसा = ईसा मसीह हाथ - जो सब घाव भर देता था),
(रू-ए-मरीयम = माँ मरियम की आत्मा - पावन, शुद्ध)

दिल-ओ-जाँ फ़िदा-ए-राहें, कभी आ के देख हमदम
सर-ए-कू-ए-दिलफ़िगारां, शब-ए-आरज़ू का आलम

(दिल-ओ-जाँ फ़िदा-ए-राहें = दिल और जान दोनों रास्ते पर न्यौछावर कर दिए),
(सर-ए-कू-ए-दिलफ़िगारां = दिल की सारी गलियां घायल हैं),
(शब-ए-आरज़ू = इच्छाओं की रात),
(आलम = अवस्था, दशा, हालत)

तेरी दीद से सिवा है, तेरे शौक में बहाराँ
वो चमन जहाँ गिरी है, तेरी गेसूओं की शबनम

(दीद= दर्शन, दीदार), (चमन = बग़ीचा), (गेसू = बाल, ज़ुल्फ़ें), (शबनम = ओस)

(तेरी दीद से सिवा है, तेरे शौक में बहाराँ = वो बहार जिसे तुझे देखने की इच्छा है उसे भी तेरा दीदार नहीं हो रहा है)

लो सुनी गयी हमारी, यूँ फिरे हैं दिन कि फिर से

वही गोशा-ए-क़फ़स है, वही फ़स्ल-ए-गुल का मातम

(गोशा-ए-क़फ़स = पिंजरे का कोना), (फ़स्ल-ए-गुल = बसंत ऋतु, बहार मौसम),  (आलम = अवस्था, दशा, हालत)

ये अजब क़यामतें हैं, तेरी रहगुज़र से गुज़रा
न हुआ कि मर मिटे हम, न हुआ कि जी उठे हम

(रहगुज़र = राह, पथ)

- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आबिदा परवीन/ Abida Parveen

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