Saturday, December 6, 2014

फिर आने लगा याद वही प्यार का आलम

फिर आने लगा याद वही प्यार का आलम
इंकार का आलम कभी इक़रार का आलम

वो पहली मुलाक़ात में रंगीन इशारे
फिर बातों ही बातों में वो तक़रार का आलम

वोह झूमता बलखाता हुआ सर्व-ऐ-ख़िरामा 
मैं कैसे भुला दूँ तेरी रफ़्तार का आलम

(सर्व-ऐ-ख़िरामा =  शान/ शाइस्तगी से चलने वाला)

कब आये थे वो कब गये, कुछ याद नहीं है
आँखों में बसा है वोही दीदार का आलम

-क़मर जलालाबादी


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