फिर आने लगा याद वही प्यार का आलम
इंकार का आलम कभी इक़रार का आलम
वो पहली मुलाक़ात में रंगीन इशारे
फिर बातों ही बातों में वो तक़रार का आलम
वोह झूमता बलखाता हुआ सर्व-ऐ-ख़िरामा
मैं कैसे भुला दूँ तेरी रफ़्तार का आलम
(सर्व-ऐ-ख़िरामा = शान/ शाइस्तगी से चलने वाला)
कब आये थे वो कब गये, कुछ याद नहीं है
आँखों में बसा है वोही दीदार का आलम
-क़मर जलालाबादी
इंकार का आलम कभी इक़रार का आलम
वो पहली मुलाक़ात में रंगीन इशारे
फिर बातों ही बातों में वो तक़रार का आलम
वोह झूमता बलखाता हुआ सर्व-ऐ-ख़िरामा
मैं कैसे भुला दूँ तेरी रफ़्तार का आलम
(सर्व-ऐ-ख़िरामा = शान/ शाइस्तगी से चलने वाला)
कब आये थे वो कब गये, कुछ याद नहीं है
आँखों में बसा है वोही दीदार का आलम
-क़मर जलालाबादी
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