न डगमगाए हम कभी वफ़ा के रस्ते में
चराग़ हमने जलाए वफ़ा के रस्ते में
किसे लगाए गले और कहाँ कहाँ ठहरे
हज़ार गुंचा-ओ-गुल हैं सबा के रस्ते में
(गुंचा-ओ-गुल = कली और फूल), (सबा = बयार, हवा)
ख़ुदा का नाम कोई ले तो चौंक उठते हैं
मिले हैं हमको वो रहबर ख़ुदा के रस्ते में
(रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक)
कहीं सलासिल-ए-तस्बीह और कहीं जुन्नार
बिछे हैं दाम बहुत मुद्दआ के रस्ते में
(सलासिल-ए-तस्बीह = जपमाला की ज़ंजीर), (जुन्नार = यज्ञोपवीत, जनेऊ), (दाम = जाल), (मुद्दआ़ = उद्देश्य, मक़सद)
अभी वो मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र नहीं आई
है आदमी अभी जुर्म-ओ-सज़ा के रस्ते में
(मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र = चिंतन और परख की मंज़िल)
हैं आज भी वही दार-ओ-रसन वही ज़िन्दाँ
हर एक निगाह-ए-रुमूज़ आश्ना के रस्ते में
(दार-ओ-रसन = फाँसी का फंदा और रस्सी), (ज़िन्दाँ = जेल, कारागार), (निगाह-ए-रुमूज़ = रहस्यपूर्ण नज़रें), (आश्ना = मित्र/ दोस्त, प्रेमी/ प्रेमिका, परिचित)
ये नफ़रतों की फ़सीलें, जहालतों के हिसार
न रह सकेंगे हमारी सदा के रस्ते में
(फ़सीलें = परकोटे, चारदीवारी), (जहालतों के हिसार = अज्ञान के किले), (सदा = आवाज़)
मिटा सके न कोई सैल-ए-इंक़लाब जिन्हें
वो नक़्श छोड़े हैं हमने वफ़ा के रस्ते में
(सैल-ए-इंक़लाब = क्रांति का प्रवाह), (नक़्श = निशान)
ज़माना एक सा 'जालिब' सदा नहीं रहता
चलेंगे हम भी कभी सर उठा के रस्ते में
-हबीब जालिब
चराग़ हमने जलाए वफ़ा के रस्ते में
किसे लगाए गले और कहाँ कहाँ ठहरे
हज़ार गुंचा-ओ-गुल हैं सबा के रस्ते में
(गुंचा-ओ-गुल = कली और फूल), (सबा = बयार, हवा)
ख़ुदा का नाम कोई ले तो चौंक उठते हैं
मिले हैं हमको वो रहबर ख़ुदा के रस्ते में
(रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक)
कहीं सलासिल-ए-तस्बीह और कहीं जुन्नार
बिछे हैं दाम बहुत मुद्दआ के रस्ते में
(सलासिल-ए-तस्बीह = जपमाला की ज़ंजीर), (जुन्नार = यज्ञोपवीत, जनेऊ), (दाम = जाल), (मुद्दआ़ = उद्देश्य, मक़सद)
अभी वो मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र नहीं आई
है आदमी अभी जुर्म-ओ-सज़ा के रस्ते में
(मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र = चिंतन और परख की मंज़िल)
हैं आज भी वही दार-ओ-रसन वही ज़िन्दाँ
हर एक निगाह-ए-रुमूज़ आश्ना के रस्ते में
(दार-ओ-रसन = फाँसी का फंदा और रस्सी), (ज़िन्दाँ = जेल, कारागार), (निगाह-ए-रुमूज़ = रहस्यपूर्ण नज़रें), (आश्ना = मित्र/ दोस्त, प्रेमी/ प्रेमिका, परिचित)
ये नफ़रतों की फ़सीलें, जहालतों के हिसार
न रह सकेंगे हमारी सदा के रस्ते में
(फ़सीलें = परकोटे, चारदीवारी), (जहालतों के हिसार = अज्ञान के किले), (सदा = आवाज़)
मिटा सके न कोई सैल-ए-इंक़लाब जिन्हें
वो नक़्श छोड़े हैं हमने वफ़ा के रस्ते में
(सैल-ए-इंक़लाब = क्रांति का प्रवाह), (नक़्श = निशान)
ज़माना एक सा 'जालिब' सदा नहीं रहता
चलेंगे हम भी कभी सर उठा के रस्ते में
-हबीब जालिब
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