Sunday, April 19, 2015

लाख आफ़ताब पास से होकर गुज़र गए
हम बैठे इंतज़ार-ए-सहर देखते रहे
-जिगर मुरादाबादी

(आफ़ताब =  सूरज), (इंतज़ार-ए-सहर = सुबह का इंतज़ार)

 

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