Monday, May 11, 2015

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है

मुस्कुराते हुए वो मजमा-ए-अग्यार के साथ
आज यूँ बज़्म में आए हैं कि जी जानता है

(मजमा-ए-अग्यार = गैरों का समूह, पराये लोग), (बज़्म = महफ़िल)

जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने
तूने दिल इतने दुखाए हैं कि जी जानता है

तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़
वो मेरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है

इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है

दोस्ती में तेरी दरपर्दा हमारे दुश्मन
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है

सादगी, बाँकपन, अग्माज़, शरारत, शोखी
तू ने अंदाज़ वो पाए हैं कि जी जानता है

'दाग़'-ए-वारफ़्ता को हम आज तेरे कूचे से
इस तरह खींच के लाये हैं कि जी जानता है

(वारफ़्ता = तल्लीन, भटका हुआ, बेसुध), (कूचा = गली)

-दाग़
Noorjahan
 
Farida Khanum




 

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