Thursday, May 21, 2015

किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता

किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यूँ नहीं होता

मिरी इक ज़िन्दगी के कितने हिस्सेदार हैं लेकिन
किसी की ज़िन्दगी में मेरा हिस्सा क्यूँ नहीं होता

जहाँ में यूँ तो होने को बहुत कुछ होता रहता है
मैं जैसा सोचता हूँ कुछ भी वैसा क्यूँ नहीं होता

हमेशा तंज़ करते हैं तबियत पूछने वाले
तुम अच्छा क्यूँ नहीं करते मैं अच्छा क्यूँ नहीं होता

ज़माने भर के लोगों को किया है मुब्तला तूने
जो तेरा हो गया तू भी उसी का क्यूँ नहीं होता

(मुब्तला = ग्रस्त, फँसा हुआ)

-राजेश रेड्डी



https://www.youtube.com/watch?v=fzq4GF1ap8s
 

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