Saturday, May 23, 2015

ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए

ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए
इस ख़िज़ाँ को बहार कर लिया जाए

(ख़िज़ाँ = पतझड़)

फिर जुनूँ को सवार कर लिया जाए
ख़ुद को फिर तार तार कर लिया जाए

ज़िन्दगी की कमान से निकले
तीर को आर-पार कर लिया जाए

ख़ुदकुशी को उधार रखते हुए
मौत का इंतिज़ार कर लिया जाए

तजरबों को भुला के चाहते हैं
तुझ पे फिर एतिबार कर लिया जाए

एक ही शख़्स तो जहान में है
ख़ुद को भी गर शुमार कर लिया जाए

(शुमार = शामिल)

सोच कर इस जहाँ के बारे में
ख़ुद को क्यूँ शर्मसार कर लिया जाए

अब तो लगता है दुश्मनों को भी
दोस्तों में शुमार कर लिया जाए

अश्क आँखों में फिर उमड़ आए
इस नदी को भी पार कर लिया जाए

(अश्क = आँसू)

पत्थर औरों पे अब नहीं उठते
ख़ुद को ही संगसार कर लिया जाए

(संगसार = पत्थर मार मार कर मार डालना)

सुन के अपने ज़मीर की आवाज़
ख़ुद को क्यूँ शर्मसार कर लिया जाए

-राजेश रेड्डी
 

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