Saturday, May 23, 2015

कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है

कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है
मुझ में इक बच्चा बुज़ुर्गों की तरह बोलता है

क्या अजब है कि उड़ाता है कबूतर पहले
फिर फ़ज़ाओं में वो बारूद की बू घोलता है

रूप कितने ही भरें कितने ही चेहरे बदलें
आईना आपको अपनी ही तरह तौलता है

सोच लो कल कहीं आँसू न बहाने पड़ जाएँ
ख़ून का क्या है रगों में वो यूँ ही खौलता है

हाथ उठाता है दुआओं को फ़लक भी उस दम
जब परिंदा कोई परवाज़ को पर तौलता है

(फ़लक = आसमान)

कौन वाक़िफ़ नहीं संसार के सच से लेकिन 
सब का संसार की हर चीज़ पे मन डोलता है

 -राजेश रेड्डी

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