Tuesday, July 14, 2015

शोला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो

शोला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो

(सदाएँ = आवाज़ें)

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो

ये भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी
ऐ ख़ुसरवान-ए-शहर क़बाएँ मुझे ना दो

(ख़ुसरवान-ए-शहर = शहर के बादशाह), (क़बा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा, चोगा)

ऐसा कभी न हो के पलटकर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

(सदाएँ = आवाज़ें)

कब मुझ को एतिराफ़-ए-मुहब्बत न था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा था सज़ाएँ मुझे न दो

(एतिराफ़-ए-मुहब्बत = प्यार कबूलना, स्वीकार करना कि मुहब्बत है)

-अहमद फ़राज़

 

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