जब तक खुली नहीं थी असरार लग रही थी
ये ज़िन्दगी मुझे भी दुश्वार लग रही थी
(असरार = भेद, रहस्य), (दुश्वार = कठिन, मुश्किल)
मुझ पर झुकी हुई थी फूलों की एक डाली
लेकिन वो मेरे सर पर तलवार लग रही थी
छूते ही जाने कैसे कदमों में आ गिरी वो
जो फ़ासले से ऊँची दीवार लग रही थी
शहरों में आ के कैसे आहिस्ता-रौ हुआ मैं
सहरा में तेज़ अपनी रफ़्तार लग रही थी
(आहिस्ता-रौ = धीमी गति), (सहरा = रेगिस्तान, जंगल)
लहरों के जागने पर कुछ भी न काम आई
क्या चीज़ थी जो मुझको पतवार लग रही थी
अब कितनी कारआमद जंगल में लग रही है
वो रौशनी जो घर में बेकार लग रही थी
(कारआमद = उपयोगी)
टूटा हुआ है शायद वो भी हमारे जैसा
आवाज़ उसकी जैसे झंकार लग रही थी
'आलम' गज़ल में ढल कर क्या खूब लग रही है
जो टीस मेरे दिल का आज़ार लग रही थी
(आज़ार = दुःख, कष्ट, रोग)
-आलम खुर्शीद
ये ज़िन्दगी मुझे भी दुश्वार लग रही थी
(असरार = भेद, रहस्य), (दुश्वार = कठिन, मुश्किल)
मुझ पर झुकी हुई थी फूलों की एक डाली
लेकिन वो मेरे सर पर तलवार लग रही थी
छूते ही जाने कैसे कदमों में आ गिरी वो
जो फ़ासले से ऊँची दीवार लग रही थी
शहरों में आ के कैसे आहिस्ता-रौ हुआ मैं
सहरा में तेज़ अपनी रफ़्तार लग रही थी
(आहिस्ता-रौ = धीमी गति), (सहरा = रेगिस्तान, जंगल)
लहरों के जागने पर कुछ भी न काम आई
क्या चीज़ थी जो मुझको पतवार लग रही थी
अब कितनी कारआमद जंगल में लग रही है
वो रौशनी जो घर में बेकार लग रही थी
(कारआमद = उपयोगी)
टूटा हुआ है शायद वो भी हमारे जैसा
आवाज़ उसकी जैसे झंकार लग रही थी
'आलम' गज़ल में ढल कर क्या खूब लग रही है
जो टीस मेरे दिल का आज़ार लग रही थी
(आज़ार = दुःख, कष्ट, रोग)
-आलम खुर्शीद
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