Friday, September 4, 2015

कोशिशों में दम न था

कोशिशों में दम न था
वक़्त वरना कम न था

दोस्ती के ज़ख़्म का
कोई भी मरहम न था

वक़्त, हिम्मत, आसरा
सब तो थे, मौसम न था

किस क़दर हम मानते
जिस क़दर था, कम न था

सारे ग़म हैं घर के साथ
घर न था तो ग़म न था

-हस्तीमल 'हस्ती'

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