Sunday, November 1, 2015

हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह

हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे

मेरी मंज़िल है, कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ
सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे

अपनी आंखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने
अपनी पलकों पे सजा रक्खे हैं आंसू मैंने
मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे

आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मोहब्बत सुन ले
कंप-कंपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले
आज इज़हार-ऐ-ख़यालात का मौका दे दे

भूलना ही था तो ये इक़रार किया ही क्यूँ था
बेवफा तूने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे

-कैसर उल जाफ़री

Qawwali

                                                         Ghulam Ali/ ग़ुलाम अली 

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