Friday, November 13, 2015

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुँध से आना है इक धुँध में जाना है

(फ़साना = विवरण, हाल), (शय = वस्तु, चीज़)

ये राह कहाँ से है ये राह कहाँ तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है

इक पल की पलक पर है ठहरी हुई ये दुनिया
इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है

क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पर क्या बीते
इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है

हम लोग खिलौना हैं इक ऐसे खिलाड़ी का
जिस को अभी सदियों तक ये खेल रचाना है

-साहिर लुधियानवी



 

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