Sunday, November 15, 2015

मांगी ही हुई है न चुराई हुई दुनिया

मांगी ही हुई है न चुराई हुई दुनिया
छोटी ही सही अपनी बनाई हुई दुनिया

महफूज़ है इस ख़ाकनशीनी में अभी तक
आलूदा ज़माने से बचाई हुई दुनिया

(महफूज़ = सुरक्षित), (ख़ाकनशीनी = विनम्रता, ख़ाकसारी), (आलूदा = लिप्त, सना हुआ)

ज़ाहिर के ये जलवे न दिखाओ मुझे साहिब
आती है नज़र मुझ को छुपाई हुई दुनिया

शर्म आती नहीं तुम को इसे अपना बताते
ग़ैरों के पसीने से कमाई हुई दुनिया

आज इसकी रफ़ाक़त प बहुत नाज़ है तुम को
कल तुम ही कहोगे के पराई हुई दुनिया

(रफ़ाक़त = मित्रता, मेलजोल, संगत)

हर रोज़ गुज़रता हूँ मैं दामन को झटकते
कब से है मेरी राह में आई हुई दुनिया

कमज़र्फ़ चली आती है आवाज़ें लगाती
सौ बार मेरे दर से भगाई हुई दुनिया

(कमज़र्फ़ = ओछा, तुच्छ)

खाक अपने इशारों पे नचाएगी मुझे वो
लट् टू की तरह खुद ही नचाई हुई दुनिया

हम खुश हैं बहुत शहर-ए-क़नाअत की फ़िज़ा में 
शाहों को मुबारक हो सजाई हुई दुनिया

(क़नाअत = सन्तोष), (फ़िज़ा = वातावरण)

दुनिया को बुरा हम ने बना डाला है 'आलम'
अच्छी थी बहुत उस की बनाई हुई दुनिया

-आलम खुर्शीद

No comments:

Post a Comment