Sunday, December 13, 2015

हम पंछी हैं , जी बहलाने आते रहते हैं

हम पंछी हैं , जी बहलाने आते रहते हैं
अक्सर मेरे ख़्वाब मुझे समझाते रहते हैं

तुम क्यूँ उन की याद में बैठे आहें भरते हो
आने जाने वाले, आते जाते रहते हैं

वो जुमले जो लब तक आकर चुप हो जाते हैं
अंदर अंदर बरसों शोर मचाते रहते हैं

शायद हम को चैन से जीना रास नहीं आता
शौक़ से हम दुःख बाज़ारों से लाते रहते हैं

आँखों ने भी सीख लिए अब जीने के दस्तूर
भेस बदल कर आँसू हँसते गाते रहते हैं

काँटे बोने वालो ! तुम को शर्म नहीं आती
फूल खिलाने वाले फूल खिलाते रहते हैं

जाने क्या तब्दीली आयी चेहरे में 'आलम' !
आईने भी अब मुझ से शरमाते रहते हैं !!!

-आलम खुर्शीद

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