Thursday, December 17, 2015

मिली हो रूहें तो रस्मों की बंदिशें क्या हैं

मिली हो रूहें तो रस्मों की बंदिशें क्या हैं
बदन तो ख़ाक ही होने हैं रंजिशें क्या हैं

मैं हर जनम में तो पोशाक ही बदलता हूँ
मेरा वजूद मिटाने की कोशिशें क्या हैं

जो ख़ुद से मिलने की ख़्वाहिश करो तो बात बने
बग़ैर इसके जहाँ भर की ख़्वाहिशें क्या हैं

जो मोती बन सके वो बूंद जब नसीब नहीं
तो सीप के लिए फिर तेज़ बारिशें क्या हैं

-मदनपाल

https://www.youtube.com/watch?v=i0of-J0Y0xg
 

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