रिश्तों के तक़द्दुस की तिजारत नहीं की है
हमने कभी चाहत में सियासत नहीं की है
(तक़द्दुस = पवित्रता, महत्ता), (तिजारत = व्यापार, सौदागरी), (सियासत = राजनीति, छल-फ़रेब, मक्कारी)
हमसे तो इसी बात पे नाराज़ हैं कुछ लोग
हमने कभी झूठों की हिमायत नहीं की है
वो फूल की अज़मत को भला खाक़ समझता
जिसने कभी बच्चों से मुहब्बत नहीं की है
(अज़मत = महानता)
जिस घर में बुजुर्गों को उठानी पडे ज़िल्लत
उस घर पे ख़ुदा ने कभी रहमत नहीं की है
(ज़िल्लत = तिरस्कार, अपमान, अनादर)
जो बात हक़ीक़त थी कही सामने उसके
हमने तो किसी शख़्स की ग़ीबत नहीं की है
(ग़ीबत = चुग़ली)
उन लोगों ने खुद अपनी ज़बां काट के रख दी
जिन लोगों ने हक़गोई की हिम्मत नहीं की है
(हक़गोई = सच्ची बात कहना, सत्यवादिता)
हम इश्क़ का दस्तूर समझते हैं हमेशा
ये सोच के इसमें कोई बीदात नहीं की है
(बीदात = नयी बातें)
इक पल में ये माहौल बदल सकता है लेकिन
हम लोगों ने खुल कर कभी हिम्मत नहीं की है
बेजा है 'वसीम' अपनों की हमसे ये शिकायत
हमने कभी दुश्मन से भी नफ़रत नहीं की है
-वसीम मलिक, सूरत
हमने कभी चाहत में सियासत नहीं की है
(तक़द्दुस = पवित्रता, महत्ता), (तिजारत = व्यापार, सौदागरी), (सियासत = राजनीति, छल-फ़रेब, मक्कारी)
हमसे तो इसी बात पे नाराज़ हैं कुछ लोग
हमने कभी झूठों की हिमायत नहीं की है
वो फूल की अज़मत को भला खाक़ समझता
जिसने कभी बच्चों से मुहब्बत नहीं की है
(अज़मत = महानता)
जिस घर में बुजुर्गों को उठानी पडे ज़िल्लत
उस घर पे ख़ुदा ने कभी रहमत नहीं की है
(ज़िल्लत = तिरस्कार, अपमान, अनादर)
जो बात हक़ीक़त थी कही सामने उसके
हमने तो किसी शख़्स की ग़ीबत नहीं की है
(ग़ीबत = चुग़ली)
उन लोगों ने खुद अपनी ज़बां काट के रख दी
जिन लोगों ने हक़गोई की हिम्मत नहीं की है
(हक़गोई = सच्ची बात कहना, सत्यवादिता)
हम इश्क़ का दस्तूर समझते हैं हमेशा
ये सोच के इसमें कोई बीदात नहीं की है
(बीदात = नयी बातें)
इक पल में ये माहौल बदल सकता है लेकिन
हम लोगों ने खुल कर कभी हिम्मत नहीं की है
बेजा है 'वसीम' अपनों की हमसे ये शिकायत
हमने कभी दुश्मन से भी नफ़रत नहीं की है
-वसीम मलिक, सूरत
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