Friday, January 8, 2016

न अब वो प्यास न, प्यासे के ख़्वाब जैसा कुछ

न अब वो प्यास, न प्यासे के ख़्वाब जैसा कुछ
मगर है सामने अब तक सराब जैसा कुछ

(सराब = मृगतृष्णा)

अब उस का नाम, न् उसकी कोई कहानी याद
जो बरसों मैं ने पढ़ा था किताब कैसा कुछ

कोई शबीह निगाहों में दौड़ जाती है
कभी जो देखूँ कहीं माहताब जैसा कुछ

(शबीह = तस्वीर, चित्र), (माहताब = चन्द्रमा, चाँद)

कहीं सुकूं से मुझे रहने ही नहीं देता
मेरी रगों में रवां इज़्तिराब जैसा कुछ

(रवां = बहता हुआ), (इज़्तिराब = घबराहट, बेचैनी)

ख्याल आया कि लिक्खूँ मैं दास्ताँ अपनी
बना भी खाका तो खाना-खराब जैसा कुछ

(खाना-खराब = अभागा)

भटक रहा हूँ कि दरिया कहीं नज़र आए
उठाए फिरता हूँ सर पर अज़ाब जैसा कुछ

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट, पाप)

लरज़ रहे हैं मेरे दिल के तार भी 'आलम'
कहीं पे बजने लगा है रबाब जैसा कुछ

(रबाब = सारंगी की तरह का एक प्रकार का बाजा)

-आलम खुर्शीद

نہ اب وہ پیاس نہ پیاسے کے خواب جیسا کچھ
 مگر ہے سامنے اب تک سراب جیسا کچھ

اب اس کا نام نہ اس کی کوئی کہانی یاد
 جو برسوں پڑھتا رہا میں کتاب جیسا کچھ
 کوئی شبیہ نگاہوں میں دوڑ جاتی ہے
 کبھی جو دیکھوں کہیں ماہتاب جیسا کچھ
 مجھے سکوں سے کہیں رہنے ہی نہیں دیتا
 مرے لہو میں رواں اضطراب جیسا کچھ
 خیال آیا کہ لکھوں میں داستاں اپنی
 بنا بھی خاکہ تو خانہ خراب جیسا کچھ
 بھٹک رہا ہوں کہ دریا کہیں نظر آۓ
 اٹھاۓ پھرتا ہوں سر پر عذاب جیسا کچھ
 اب اس بساط پہ کوئی گمان کرنا کیا
 کہ بہتے آب پہ میں ہوں حباب جیسا کچھ
 لرز رہے ہیں مرے دل کے تار بھی عالم
 کہیں پہ بجنے لگا ہے رباب جیسا کچھ

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