अपने पिछले हमसफ़र कि कोई तो पहचान रख
कुछ नहीं तो मेज़ पर काँटों भरा गुलदान रख
तपते रेगिस्तान का लम्बा सफ़र कट जाएगा
अपनी आँखों में मगर छोटा-सा नाख्लिस्तान रख
दोस्ती, नेकी, शराफत, आदमियत और वफ़ा
अपनी छोटी नाव में इतना भी मत सामान रख
सरकशी पे आ गई हैं मेरी लहरें ऐ ख़ुदा !
मैं समुन्दर हूँ मेरे सीने में भी चट्टान रख
(सरकशी = उद्दंडता, उज्जड़पन, अशिष्टता, अवज्ञा, हुक्मउदूली)
घर के बाहर की फ़िज़ा का कुछ तो अंदाज़ा लगे
खोल कर सारे दरीचे और रौशनदान रख
(फ़िज़ा = वातावरण, रौनक, प्राकृतिक सौंदर्य), (दरीचे = खिड़कियां, झरोखे)
नंगे पाँव घास पर चलने में भी इक लुत्फ़ है
ओस के कतरों से 'आलम' खुद को मत अन्जान रख
- आलम खुर्शीद
कुछ नहीं तो मेज़ पर काँटों भरा गुलदान रख
तपते रेगिस्तान का लम्बा सफ़र कट जाएगा
अपनी आँखों में मगर छोटा-सा नाख्लिस्तान रख
दोस्ती, नेकी, शराफत, आदमियत और वफ़ा
अपनी छोटी नाव में इतना भी मत सामान रख
सरकशी पे आ गई हैं मेरी लहरें ऐ ख़ुदा !
मैं समुन्दर हूँ मेरे सीने में भी चट्टान रख
(सरकशी = उद्दंडता, उज्जड़पन, अशिष्टता, अवज्ञा, हुक्मउदूली)
घर के बाहर की फ़िज़ा का कुछ तो अंदाज़ा लगे
खोल कर सारे दरीचे और रौशनदान रख
(फ़िज़ा = वातावरण, रौनक, प्राकृतिक सौंदर्य), (दरीचे = खिड़कियां, झरोखे)
नंगे पाँव घास पर चलने में भी इक लुत्फ़ है
ओस के कतरों से 'आलम' खुद को मत अन्जान रख
- आलम खुर्शीद
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