ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से
मैं जी उठा हूँ ज़रा ताज़गी के आने से
उदास हो गये यकलख़्त शादमां चेहरे
मेरे लबों पे ज़रा सी हँसी के आने से
(यकलख़्त = एक बारगी, आकस्मिक, अचानक, एकदम से), (शादमां = प्रसन्न, ख़ुश)
दुखों के यार बिछड़ने लगे हैं अब मुझ से
ये सानेहा भी हुआ है खुशी के आने से
(सानेहा = आपत्ति, मुसीबत, दुर्घटना)
करख़्त होने लगे हैं बुझे हुए लहजे
मिरे मिजाज़ में शाइस्तगी के आने से
(करख़्त = कड़ा, कठोर), (शाइस्तगी = शिष्टता, सभ्यता)
बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
यक़ीन होता नहीं शहर-ए-दिल अचानक यूँ
बदल गया है किसी अजनबी के आने से
मैं रोते रोते अचानक ही हंस पड़ा 'आलम'
तमाशबीनों में संजीदगी के आने से
- आलम खुर्शीद
मैं जी उठा हूँ ज़रा ताज़गी के आने से
उदास हो गये यकलख़्त शादमां चेहरे
मेरे लबों पे ज़रा सी हँसी के आने से
(यकलख़्त = एक बारगी, आकस्मिक, अचानक, एकदम से), (शादमां = प्रसन्न, ख़ुश)
दुखों के यार बिछड़ने लगे हैं अब मुझ से
ये सानेहा भी हुआ है खुशी के आने से
(सानेहा = आपत्ति, मुसीबत, दुर्घटना)
करख़्त होने लगे हैं बुझे हुए लहजे
मिरे मिजाज़ में शाइस्तगी के आने से
(करख़्त = कड़ा, कठोर), (शाइस्तगी = शिष्टता, सभ्यता)
बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
यक़ीन होता नहीं शहर-ए-दिल अचानक यूँ
बदल गया है किसी अजनबी के आने से
मैं रोते रोते अचानक ही हंस पड़ा 'आलम'
तमाशबीनों में संजीदगी के आने से
- आलम खुर्शीद
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