Friday, February 26, 2016

किसी ख़्याल को ज़ंजीर कर रहा हूँ मैं

किसी ख़्याल को ज़ंजीर कर रहा हूँ मैं
शिकस्ता ख़्वाब की ताबीर कर रहा हूँ मैं

(ताबीर = स्वप्नकाल बताना, स्वप्न का फल)

मेरे वो ख़्वाब जो रंगों में ढल नहीं पाए
उन्हीं को शेर में तस्वीर कर रहा हूँ मैं

हकीक़तों पे ज़माने को ऐतबार नहीं
सो अब फ़साने में तहरीर कर रहा हूँ मैं

(तहरीर = लेख, लिखावट)

मेरे मकान का नक्शा तो है नया लेकिन
पुरानीं ईंट से तामीर कर रहा हूँ मैं

(तामीर = निर्माण, बनाना, मकान बनाने का काम)

दुखों को अपने छुपाता हूँ मैं ख़ज़ानों सा
मगर खुशी को हमा-गीर कर रहा हूँ मैं

(हमा-गीर = शामिल, मन में बैठना)

मुझे भी शौक़ है दुनिया को ज़ेर करने का
सो अपने आपको तस्ख़ीर कर रहा हूँ मैं

(ज़ेर = निम्न, नीचे, परास्त), (तस्ख़ीर = वशीभूत करना, जीतना, बस में करना)

ज़मीन है कि बदलती नहीं कभी महवर
अजब अजब सी तदाबीर कर रहा हूँ मैं

अजीब शख़्स हूँ मंज़िल बुला रही है मगर
बिला-जवाज़ ही ताख़ीर कर रहा हूँ मैं

(बिला-जवाज़ = जो जाइज़ नहीं है), (ताख़ीर = विलम्ब, देर)

जो मैं हूँ उस को छुपाता हूँ सारे आलम से
जो मैं नहीं हूँ वो तशहीर कर रहा हूँ मैं

(आलम = जगत, संसार, दुनिया), (तशहीर = किसी के दोषों को सब पर प्रकट करना)

- आलम खुर्शीद

No comments:

Post a Comment