Friday, February 26, 2016

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा
जो मुझ पे होता नहीं है राज़ आश्कार मेरा

(फ़लक = आसमान), (ग़ुबार = गर्द, धूल, मन में दबाया हुआ क्रोध), (आश्कार = स्पष्ट, प्रकट, खुला हुआ)

तमाम दुनिया सिमट न जाए मिरी हदों में
कि हद से बढ़ने लगा है अब इंतिशार मेरा

(इंतिशार = फैलना, बिखरना)

धुआँ सा उठता है किस जगह से मैं जानता हूँ
जलाता रहता है मुझको हर पल शरार मेरा

(शरार = चिंगारी)

बदल रहे हैं सभी सितारे मदार अपना
मिरे जुनूँ पे टिका है दार-ओ-मदार मेरा

(मदार = दौरा करने का रास्ता, भ्रमण मार्ग), (दार-ओ-मदार = निर्भरता)

किसी के रस्ते पे कैसे नज़रें जमाए रक्खूँ
अभी तो करना मुझे है ख़ुद इंतिज़ार मेरा

तिरी इताअत क़ुबूल कर लूँ भला मैं कैसे
कि मुझपे चलता नहीं है ख़ुद इख़्तियार मेरा

(इताअत = हुक्म मानना, आज्ञापालन),  (इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

बस इक पल में किसी समुन्दर में जा गिरूंगा
अभी सितारों में हो रहा है शुमार मेरा

(शुमार = गिनती, हिसाब)

- आलम खुर्शीद

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