बीच भँवर में पहले उतारा जाता है
फिर साहिल से हमें पुकारा जाता है
(साहिल = किनारा)
ख़ुश हैं यार हमारी सादालौही पर
हम ख़ुश हैं क्या इसमें हमारा जाता है
(सादालौही = भोला-भालापन, निश्छलता)
पहले भी वो चाँद हमारा साथी था
देखें! कितनी दूर सितारा जाता है
कब तक अपनी पलकें बंद रखोगे तुम
क्या आँखों से कोई नज़ारा जाता है
दुनिया की आदत है इसमें हैरत क्या
काँच के घर पर पत्थर मारा जाता है
कब आएगा तेरा सुनहरा कल 'आलम'
इस चक्कर में आज हमारा जाता है
- आलम खुर्शीद
फिर साहिल से हमें पुकारा जाता है
(साहिल = किनारा)
ख़ुश हैं यार हमारी सादालौही पर
हम ख़ुश हैं क्या इसमें हमारा जाता है
(सादालौही = भोला-भालापन, निश्छलता)
पहले भी वो चाँद हमारा साथी था
देखें! कितनी दूर सितारा जाता है
कब तक अपनी पलकें बंद रखोगे तुम
क्या आँखों से कोई नज़ारा जाता है
दुनिया की आदत है इसमें हैरत क्या
काँच के घर पर पत्थर मारा जाता है
कब आएगा तेरा सुनहरा कल 'आलम'
इस चक्कर में आज हमारा जाता है
- आलम खुर्शीद
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