इसीलिए तो किसी ने हमें बचाया नहीं
कि डूबते हुए हम ने उन्हें बुलाया नहीं
हमें था खौफ़ कहीं यार कम न हो जाएँ
सो मुश्किलों में किसी को भी आज़माया नहीं
ये खोये खोये से रहते हैं क्यूँ हमेशा हम
किसी ने पूछा नहीं, हम ने भी बताया नहीं
बहुत दिनों से मिरी खिड़कियाँ मुक़फ़्फ़ल हैं
बहुत दिनों से से इधर चाँद जगमगाया नहीं
(मुक़फ़्फ़ल = जिसमें ताला पड़ा हो)
बहुत दिनों से मिले ही नहीं हैं हम खुद से
बहुत दिनों से कोई शख्स याद आया नहीं
अब उसकी फ़िक्र सताने लगी हवाओं को
वो इक चराग़ जो हम ने अभी जलाया नहीं
अभी से हो गये हैरान क्यूँ तमाशा-गर
अभी तो हम ने कोई खेल भी दिखाया नहीं
किसी को हम ने कभी याद कब किया 'आलम'
मगर जो याद हुआ हो उसे भुलाया नहीं
-आलम खुर्शीद
कि डूबते हुए हम ने उन्हें बुलाया नहीं
हमें था खौफ़ कहीं यार कम न हो जाएँ
सो मुश्किलों में किसी को भी आज़माया नहीं
ये खोये खोये से रहते हैं क्यूँ हमेशा हम
किसी ने पूछा नहीं, हम ने भी बताया नहीं
बहुत दिनों से मिरी खिड़कियाँ मुक़फ़्फ़ल हैं
बहुत दिनों से से इधर चाँद जगमगाया नहीं
(मुक़फ़्फ़ल = जिसमें ताला पड़ा हो)
बहुत दिनों से मिले ही नहीं हैं हम खुद से
बहुत दिनों से कोई शख्स याद आया नहीं
अब उसकी फ़िक्र सताने लगी हवाओं को
वो इक चराग़ जो हम ने अभी जलाया नहीं
अभी से हो गये हैरान क्यूँ तमाशा-गर
अभी तो हम ने कोई खेल भी दिखाया नहीं
किसी को हम ने कभी याद कब किया 'आलम'
मगर जो याद हुआ हो उसे भुलाया नहीं
-आलम खुर्शीद
No comments:
Post a Comment