Tuesday, May 31, 2016

यूँ चेहरा-दर-चेहरा भी वो

यूँ चेहरा-दर-चेहरा भी वो
लेकिन अपने जैसा भी वो

भीतर बेहद टूटन-बिखरन
बाहर एक करीना भी वो

ख़ुद से एक मुसलसल अनबन
ख़ुद से एक समझौता भी वो

उगते सूरज की गरमाहट
दोपहरी में साया भी वो

ख़ुद में एक फ़कीर मुकम्मल
पुश्तैनी सरमाया भी वो

-विज्ञान व्रत

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