Tuesday, May 31, 2016

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे
बस एक बार ज़मीर उसको शर्मसार करे

कई हज़ार तरीक़े हैं ख़ुदखुशी के मियाँ
बशर को अब नहीं लाज़िम किसी को प्यार करे

(बशर = इंसान)

हरेक बात पे तकरार ही नहीं अच्छी
कभी तो प्यार का अन्दाज़ इख़्तियार करे

सुना है उसको अज़ाबों का कोई ख़ौफ़ नहीं
हमारा ज़िक्र भी ज़ालिम कभी-कभार करे

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

हमारे बाद रक़ीबों पे कोई क़ैद न हो
किसी भी हीले से जो चाहे ज़िक्रे-यार करे

किसी भी हाल में जी लेंगे बेहया होकर
कहाँ तलक कोई मरने का इन्तज़ार करे

-कांतिमोहन 'सोज़'

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