Friday, May 27, 2016

ख़ुद को लहूलुहान न कर

ख़ुद को लहूलुहान न कर
रिश्तों का अपमान न कर

इक लम्हे का जीवन है
सदियों का सामान न कर

प्यार अगर है तो घर है
घर को यार दुकान न कर

जो जैसा है वैसा कह
जुगनू को दिनमान न कर

कुछ तो मुश्किल रहने दे
हर मुश्किल आसान न कर

-अश्वघोष

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