पारा-पारा हुआ पैराहन-ए-जाँ
फिर मुझे छोड़ गये चारागराँ
(पारा-पारा = टुकड़े-टुकड़े), (पैराहन-ए-जाँ = प्राणों का लिबास, शरीर), (चारागराँ = चिकित्सक)
कोई आहट, न इशारा, न सराब
कैसा वीराँ है ये दश्त-ए-इम्काँ
(सराब = मृगतृष्णा), (वीराँ = वीरान), (दश्त-ए-इम्काँ = संभावनाओं का जंगल, सम्भावना क्षेत्र, संसार)
चारसू ख़ाक़ उड़ाती है हवा,
अज़कराँ ताबाकराँ रेग-ए-रवाँ
(चारसू = चारों ओर, हर समय), (अज़कराँ = प्रभुत्व स्थापित करना), (ताबाकराँ = चमकदार), (रेग-ए-रवाँ = उड़ता हुआ बालू या रेत)
वक़्त के सोग में लम्हों का जुलूस
जैसे इक क़ाफ़िला-ए-नौहागराँ
(सोग = शोक), (क़ाफ़िला-ए-नौहागराँ = शोक मनाने वालों का कारवां)
मर्ग-ए-उम्मीद के वीराँ शब-ओ-रोज़
मौसम-ए-दहर, बहार और न ख़िज़ाँ
(मर्ग-ए-उम्मीद = आशाओं की मौत), (वीराँ = वीरान), (शब-ओ-रोज़ = रात और दिन), (मौसम-ए-दहर = दुनिया का मौसम), (ख़िज़ाँ = पतझड़)
कैसे घबराये हुए फिरते हैं
तेरे मोहताज़ तेरे दिल-ज़दगाँ
(दिल-ज़दगाँ = दिल की चोट खाये हुए)
-सय्यद रज़ी तिरमिज़ी
फिर मुझे छोड़ गये चारागराँ
(पारा-पारा = टुकड़े-टुकड़े), (पैराहन-ए-जाँ = प्राणों का लिबास, शरीर), (चारागराँ = चिकित्सक)
कोई आहट, न इशारा, न सराब
कैसा वीराँ है ये दश्त-ए-इम्काँ
(सराब = मृगतृष्णा), (वीराँ = वीरान), (दश्त-ए-इम्काँ = संभावनाओं का जंगल, सम्भावना क्षेत्र, संसार)
चारसू ख़ाक़ उड़ाती है हवा,
अज़कराँ ताबाकराँ रेग-ए-रवाँ
(चारसू = चारों ओर, हर समय), (अज़कराँ = प्रभुत्व स्थापित करना), (ताबाकराँ = चमकदार), (रेग-ए-रवाँ = उड़ता हुआ बालू या रेत)
वक़्त के सोग में लम्हों का जुलूस
जैसे इक क़ाफ़िला-ए-नौहागराँ
(सोग = शोक), (क़ाफ़िला-ए-नौहागराँ = शोक मनाने वालों का कारवां)
मर्ग-ए-उम्मीद के वीराँ शब-ओ-रोज़
मौसम-ए-दहर, बहार और न ख़िज़ाँ
(मर्ग-ए-उम्मीद = आशाओं की मौत), (वीराँ = वीरान), (शब-ओ-रोज़ = रात और दिन), (मौसम-ए-दहर = दुनिया का मौसम), (ख़िज़ाँ = पतझड़)
कैसे घबराये हुए फिरते हैं
तेरे मोहताज़ तेरे दिल-ज़दगाँ
(दिल-ज़दगाँ = दिल की चोट खाये हुए)
-सय्यद रज़ी तिरमिज़ी
गजब....👍👍👍
ReplyDeleteBeautiful. Many thanks. Probably the best transliteration of the work on Internet !
ReplyDeleteI agree with you. Since 2014, I have been searching the lyrics. This is best from of presentation. I have also written about subscription. Is there a cost to pay.
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteजो साहब यह ब्लॉग लिखते हैं उन्हें मेरा आदाब । 1990 से पाकिस्तानी ग़ज़ल गायकों को सुनना शुरू किया था । तब बाज़ार में कैसेट मिलते थे । सबसे पहले ग़ुलाम अली ख़ान साहब को सुना । बाद में दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम में लाइव सुनने गया था । यह क़िस्सा सुखद है । हमारे एक अज़ीज़ वाद्ययंत्र में पीएचडी हैं । विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं । उनका कहना है कि ग़ुलाम अली साहब ने जिस लयबद्ध आवाज़ में ग़ज़लों को गाया वह बेमिसाल और बेहतरीन है । सुरों का आरोह और अवरोह पक्का है । इस फ़िराक़ में गले की आवाज़ कुरबान कर दी ।
ReplyDeleteआपने हर शे’र के बाद मुश्किल लफ़्ज़ों के मायने लिखे हैं । ऐसा आज से पहले नहीं देखा । मुझे उम्मीद है कि आप निराश नहीं करेंगे । कुछ एक बार ग़ज़लों को खोजना होगा । मुझे नुक़्तों की मालूमात है । आपके ब्लॉग पर कुछ दफ़ा आऊँगा । मुझे निराशा नहीं मिली तो लिखूँगा कि आपकी ख़िदमत में क्या सेवा कर सकता हूँ ।