Wednesday, August 17, 2016

बारहा ख़ुद को आज़माते हैं

बारहा ख़ुद को आज़माते हैं
तब कहीं जा के जगमगाते हैं

(बारहा = कई बार, अक्सर)

शक़्ल हमने जिन्हें अता की है
वे हमें आईना दिखाते हैं

(अता = दान)

बोझ जब मैं उतार देता हूँ
तब मेरे पाँव लड़खड़ाते हैं

सुख परेशां है ये सुना जब से
हम तो दुख को भी गुनगुनाते हैं

तीरगी तो रहेगी ही ऐ दोस्त
वे कहाँ मेरे घर पे आते हैं

(तीरगी = अन्धकार)

-हस्तीमल 'हस्ती'

1 comment: