बारहा ख़ुद को आज़माते हैं
तब कहीं जा के जगमगाते हैं
(बारहा = कई बार, अक्सर)
शक़्ल हमने जिन्हें अता की है
वे हमें आईना दिखाते हैं
(अता = दान)
बोझ जब मैं उतार देता हूँ
तब मेरे पाँव लड़खड़ाते हैं
सुख परेशां है ये सुना जब से
हम तो दुख को भी गुनगुनाते हैं
तीरगी तो रहेगी ही ऐ दोस्त
वे कहाँ मेरे घर पे आते हैं
(तीरगी = अन्धकार)
-हस्तीमल 'हस्ती'
तब कहीं जा के जगमगाते हैं
(बारहा = कई बार, अक्सर)
शक़्ल हमने जिन्हें अता की है
वे हमें आईना दिखाते हैं
(अता = दान)
बोझ जब मैं उतार देता हूँ
तब मेरे पाँव लड़खड़ाते हैं
सुख परेशां है ये सुना जब से
हम तो दुख को भी गुनगुनाते हैं
तीरगी तो रहेगी ही ऐ दोस्त
वे कहाँ मेरे घर पे आते हैं
(तीरगी = अन्धकार)
-हस्तीमल 'हस्ती'
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