Friday, October 14, 2016

वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना

वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना
किस को मालूम यहाँ कौन है कितना अपना

(बंजारा-सिफ़त = बंजारों के समान, एक जगह ना टिकने वाला), (लम्हा ब लम्हा = क्षण-प्रतिक्षण)

जो भी चाहे वो बना ले उसे अपने जैसा
किसी आईने का होता नहीं चेहरा अपना

ख़ुद से मिलने का चलन आम नहीं है वरना
अपने अंदर ही छुपा होता है रस्ता अपना

यूँ भी होता है वो ख़ूबी जो है हम से मंसूब
उस के होने में नहीं होता इरादा अपना

(मंसूब = संबंधित)

ख़त के आख़िर में सभी यूँ ही रक़म करते हैं
उस ने रस्मन ही लिखा होगा तुम्हारा अपना

(रक़म = लिखना), (रस्मन = रीति/ परंपरा के अनुसार)

-निदा फ़ाज़ली

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