Thursday, October 20, 2016

ढूँढता फिरता हूँ ख़ुद अपनी बसारत की हुदूद
खो गई हैं मिरी नज़रें मिरी बिनाई में

(बसारत = देखने की शक्ति, दृष्टि), (हुदूद = हदें), (बिनाई = आँखों की ज़्योति)

किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म
कौन उतरा है तिरे क़ल्ब की गहराई में
-रईस अमरोहवी

(क़ल्ब = मर्मस्थल, ह्रदय, दिल)

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