जब भी किसी निगाह ने मौसम सजाये हैं
तेरे लबों के फूल बहुत याद आये हैं
निकले थे जब सफ़र पे तो महदूद था जहाँ
तेरी तलाश ने कई आलम दिखाये हैं
(महदूद = जिसकी हद बाँध दी गई हो, सीमित)
रिश्तों का ऐतबार, वफाओं का इंतज़ार
हम भी चिराग़ ले के हवाओं में आये हैं
रस्तों के नाम वक़्त के चेहरे बदल गए
अब क्या बताएँ किसको कहाँ छोड़ आये हैं
ऐ शाम के फ़रिश्तों ज़रा देख के चलो
बच्चों ने साहिलों पे घरोंदे बनाये हैं
-निदा फ़ाज़ली
तेरे लबों के फूल बहुत याद आये हैं
निकले थे जब सफ़र पे तो महदूद था जहाँ
तेरी तलाश ने कई आलम दिखाये हैं
(महदूद = जिसकी हद बाँध दी गई हो, सीमित)
रिश्तों का ऐतबार, वफाओं का इंतज़ार
हम भी चिराग़ ले के हवाओं में आये हैं
रस्तों के नाम वक़्त के चेहरे बदल गए
अब क्या बताएँ किसको कहाँ छोड़ आये हैं
ऐ शाम के फ़रिश्तों ज़रा देख के चलो
बच्चों ने साहिलों पे घरोंदे बनाये हैं
-निदा फ़ाज़ली
No comments:
Post a Comment