शीतल है मगर आग भी है प्यार को छूना
ज्यों देर तलक बर्फ़ की दीवार को छूना
आसाँ है बहुत साज़ के हर तार को छूना
मुश्किल है मगर तार की झंकार को छूना
है इनमें लहू और पसीना मेरा शामिल
अच्छा लगा दर को कभी दीवार को छूना
हर सुर्खी में उड़ती हुईं चिंगारियां देखीं
मंहगा ही पड़ा आँखों से अखबार को छूना
ऐ मौत, तुझे मौत न आ जाए संभल जा
कुछ खेल नहीं साहिबे-किरदार को छूना
-कुँअर बेचैन
ज्यों देर तलक बर्फ़ की दीवार को छूना
आसाँ है बहुत साज़ के हर तार को छूना
मुश्किल है मगर तार की झंकार को छूना
है इनमें लहू और पसीना मेरा शामिल
अच्छा लगा दर को कभी दीवार को छूना
हर सुर्खी में उड़ती हुईं चिंगारियां देखीं
मंहगा ही पड़ा आँखों से अखबार को छूना
ऐ मौत, तुझे मौत न आ जाए संभल जा
कुछ खेल नहीं साहिबे-किरदार को छूना
-कुँअर बेचैन
No comments:
Post a Comment