Saturday, October 8, 2016

शीतल है मगर आग भी है प्यार को छूना

शीतल है मगर आग भी है प्यार को छूना
ज्यों देर तलक बर्फ़ की दीवार को छूना

आसाँ है बहुत साज़ के हर तार को छूना
मुश्किल है मगर तार की झंकार को छूना

है इनमें लहू और पसीना मेरा शामिल
अच्छा लगा दर को कभी दीवार को छूना

हर सुर्खी में उड़ती हुईं चिंगारियां देखीं
मंहगा ही पड़ा आँखों से अखबार को छूना

ऐ मौत, तुझे मौत न आ जाए संभल जा
कुछ खेल नहीं साहिबे-किरदार को छूना

-कुँअर बेचैन

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