Sunday, November 6, 2016

बाहर है उजियारा अंदर अँधियारा देख रहा हूँ

बाहर है उजियारा अंदर अँधियारा देख रहा हूँ
झूठी मुस्कानों में जीता जग सारा देख रहा हूँ

शीशे को फौलाद बनाने की जो ताक़त रखते हैं
उन शोलों और अंगारों को नाकारा देख रहा हूँ

प्यार बचा रह जाय कहीं ये दुनिया को मंज़ूर नहीं
हर आँगन हर रिश्ते का मैं बँटवारा देख रहा हूँ

जिनके पाँव उसूलों को दिन रात कुचलते आये हैं
ऐसे लोगों के लब पर सच का नारा देख रहा हूँ

-हस्तीमल 'हस्ती'

No comments:

Post a Comment