Tuesday, November 8, 2016

हरे पत्ते भी थे, सरसब्ज़ थी, शादाब थी टहनी
तसल्ली तब हुई जब शाख़ पे इक फूल आया
-गुलज़ार

(सरसब्ज़ = हरी-भरी, लहलहाती हुई, प्रसन्न और संतुष्ट), (शादाब = हरी-भरी, प्रफुल्लित)

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