हर आँसू को अपने लहू करते-करते
हुईं बंद आँखें वुज़ू करते-करते
मैं गुम हो गया जुस्तजू करते-करते
तुझे पा लिया तू ही तू करते-करते
(जुस्तजू = तलाश, खोज)
उधड़ता रहा पैरहन ज़िन्दगी का
कटी उम्र सारी रफू़ करते-करते
(पैरहन = लिबास)
गुज़र जाएगी क्या यूंही ज़िन्दगानी
उसी काम को हू-ब-हू करते-करते
कठिन है मगर कट ही जाएगा रस्ता
दुखों से यूंही गुफ़्तगू करते-करते
ज़माने की रुस्वाइयाँ मोल ले लीं
तिरा तज़्करा कू-ब-कू करते-करते
(रुस्वाइयाँ = बदनामियाँ), (तज़्करा = तज़किरा = चर्चा, ज़िक्र), (कू-ब-कू = गली गली में)
तिरी आरज़ू लेके आए थे इक दिन
चले अब तिरी आरज़ू करते-करते
हमें रश्क आता है उन शाइरों पर
कटी जिनकी जाम-ओ-सुबू करते-करते
(सुबू = शराब रखने का पात्र, मटका, घड़ा)
- राजेश रेड्डी
हुईं बंद आँखें वुज़ू करते-करते
मैं गुम हो गया जुस्तजू करते-करते
तुझे पा लिया तू ही तू करते-करते
(जुस्तजू = तलाश, खोज)
उधड़ता रहा पैरहन ज़िन्दगी का
कटी उम्र सारी रफू़ करते-करते
(पैरहन = लिबास)
गुज़र जाएगी क्या यूंही ज़िन्दगानी
उसी काम को हू-ब-हू करते-करते
कठिन है मगर कट ही जाएगा रस्ता
दुखों से यूंही गुफ़्तगू करते-करते
ज़माने की रुस्वाइयाँ मोल ले लीं
तिरा तज़्करा कू-ब-कू करते-करते
(रुस्वाइयाँ = बदनामियाँ), (तज़्करा = तज़किरा = चर्चा, ज़िक्र), (कू-ब-कू = गली गली में)
तिरी आरज़ू लेके आए थे इक दिन
चले अब तिरी आरज़ू करते-करते
हमें रश्क आता है उन शाइरों पर
कटी जिनकी जाम-ओ-सुबू करते-करते
(सुबू = शराब रखने का पात्र, मटका, घड़ा)
- राजेश रेड्डी
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