Tuesday, December 6, 2016

उसका ख़याल दिल में उतरता चला गया

उसका ख़याल दिल में उतरता चला गया
मेरे सुख़न में रंग वो भरता चला गया

इक एतिबार था कि जो टूटा नहीं कभी
इक इन्तिज़ार था जो मैं करता चला गया

ठहरा रहा विदाअ़ का लम्ह़ा तमाम उम्र
और वक़्त अपनी रौ में गुज़रता चला गया

जितना छुपाता जाता था मैं अपने आपको
उतना ही आइने में उभरता चला गया

मुझको कहाँ नसीब थी मौत एक बार की
आता रहा वो याद मैं मरता चला गया

यकजा कभी न हो सका मैं अपनी ज़ात में
खुद को समेटने में बिखरता चला गया

- राजेश रेड्डी

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