Wednesday, January 18, 2017

ऐ क़ातिब-ए-तक़दीर मुझे इतना बता दे

ऐ कातिब-ए-तक़दीर मुझे इतना बता दे
क्यों मुझसे ख़फ़ा है तू, क्या मैंने किया है?

(कातिब = लेखक, लिखने वाला), (क़ातिब-ए-तक़दीर = क़िस्मत लिखने वाला, ख़ुदा)

औरों को ख़ुशी मुझको फ़कत दर्द-ओ-रंज-ओ-ग़म
दुनिया को हँसी और मुझे रोना दिया है

हिस्से में सबके आई हैं रँगीन बहारें
बदबख़्तियां लेकिन मुझे शीशे में उतारें
पीते हैं लोग रोज़-ओ-शब मसर्रतों की मय
मैं हूँ के सदा ख़ून-ए-जिगर मैंने पिया है

(बदबख्तियाँ = अभागापन), (मसर्रतों =ख़ुशियों)

क्या मैंने पिया है, क्या मैंने पिया है

था जिनके दम कदम से ये आबाद आशियां
वो चहचहाती बुलबुलें जाने गई कहाँ?
जुगनू की चमक है न सितारों की रोशनी
इस घुप्पअंधेरे में है मेरी जान पर बनी
क्या थी ख़ता के जिसकी सज़ा तूने मुझको दी
क्या था गुनह के जिसका बदला मुझसे लिया है

क्या मैंने किया है, क्या मैंने किया है
क्यों मुझसे ख़फ़ा है तू, क्या मैंने किया है

-पंडित भूषण







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