Thursday, April 20, 2017

गुज़रता है मेरा हर दिन मगर पूरा नहीं होता

गुज़रता है मेरा हर दिन मगर पूरा नहीं होता
मैं चलता जा रहा हूँ और सफ़र पूरा नहीं होता

लगाना बाग़ तो उसमें मुहब्बत भी ज़रा रखना
परिंदों के बिना कोई शजर पूरा नहीं होता

(शजर = पेड़)

ख़ुदा भी ख़ूब है भगवान की मूरत भी सुन्दर है
मगर जब माँ नहीं होती तो घर पूरा नहीं होता

वो चोटी की बनावट हो कि टोपी की सजावट हो
बिना इन्सानियत के कोई सर पूरा नहीं होता

ये मेरा ख़ालीपन है जो मुझे सैराब करता है
उधर रहता हूँ मैं ख़ुद में जिधर पूरा नहीं होता

(सेराब = भरपूर, भरा हुआ, भीगा हुआ, पानी से सींचा हुआ)

-शकील आज़मी

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