Friday, August 4, 2017

दुनिया इक दरिया है, पार उतरना भी तो है

दुनिया इक दरिया है, पार उतरना भी तो है
बेईमानी कर लूँ लेकिन मरना भी तो है

पत्थर हूँ भगवान बना रह सकता हूँ कब तक
रेज़ा-रेज़ा हो के मुझे बिखरना भी तो है

ऐसे मुझको मारो कि क़ातिल भी ठहरूँ मैं
आखिर ये इल्ज़ाम किसी पे धरना भी तो है

दिल से तुम निकले हो तो कोई और सही कोई और
ये जो ख़ालीपन है इसको भरना भी तो है

बाँध बनाने वालों को मालूम नहीं शायद
पानी जो ठहरा है उसे गुज़रना भी तो है

साहिल वालों! अभी तमाशा ख़त्म नही मेरा
डूब रहा हूँ लेकिन मुझे उभरना भी तो है

(साहिल = किनारा)

अच्छी है या बुरी है चाहे जैसी है दुनिया
आया हूँ तो कुछ दिन यहाँ ठहरना भी तो है

-शकील आज़मी

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