Wednesday, February 28, 2018

रह-ए-तलब में किसे आरज़ू-ए-मंज़िल है
शुऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है
-ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

(रह-ए-तलब = इच्छाओं की राह), (आरज़ू-ए-मंज़िल = मंज़िल की चाहत), (शुऊर = समझ, सलीका, चेतना)

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