रह-ए-तलब में किसे आरज़ू-ए-मंज़िल है
शुऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है
-ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
(रह-ए-तलब = इच्छाओं की राह), (आरज़ू-ए-मंज़िल = मंज़िल की चाहत), (शुऊर = समझ, सलीका, चेतना)
शुऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है
-ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
(रह-ए-तलब = इच्छाओं की राह), (आरज़ू-ए-मंज़िल = मंज़िल की चाहत), (शुऊर = समझ, सलीका, चेतना)
No comments:
Post a Comment