Wednesday, July 25, 2018

निकले अगर तो पहुँचे इक पल में ला-मकाँ तक

निकले अगर तो पहुँचे इक पल में ला-मकाँ तक
कुछ बात है कि नाला आता नहीं ज़ुबाँ तक

जब शहर ए दोस्ताँ ही समझे नहीं ज़ुबाँ तक
फाड़ें गला हम अपना बे फ़ायदा कहाँ तक

आख़िर को नीम जां का क़िस्सा तमाम शुद है
मुज़दा ये ले के जाओ तुम मेरे मेहरबाँ तक

दिल अपना खिल न पाया बाद अज़ ख़िज़ां भी क्यूंकर
वैसे बहार आई तो होगी गुलसिताँ तक

आ तो गए हैं याँ तकजाएँ किधर को यारब
नक़्श ए क़दम का हम कुछ पाते नहीं निशाँ तक

पूछे जो नाम उनकाबाबरतो क्या कहें हम
ऐसा छुपा है दिल में आता नहीं ज़ुबाँ तक

-बाबर इमाम

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